31-12-70 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन

“अमृतवेले से परिवर्तन शक्ति का प्रयोग” 

आज बापदादा वर्तमान और भविष्य दोनों काल के राज्य अधिकारी अर्थात् विश्व कल्याणकारी और विश्व के राज्य अधिकारी दोनों ही रूप में बच्चों को देख रहे हैं। जितना-जितना विश्व-कल्याणकारी उतना ही विश्व राज्य अधिकारी बनते हैं। इन दोनों अधिकारों को प्राप्त करने के लिए विशेष स्व-परिवर्तन की शक्ति चाहिए। उस दिन भी सुनाया था कि परिवर्तन शक्ति को अमृतवेले से लेकर रात तक कैसे कार्य में लगाओ।

पहला परिवर्तन – आँख खुलते ही मैं शरीर नहीं आत्मा हूँ, यह है आदि समय का आदि परिवर्तन संकल्प, इसी आदि संकल्प के साथ सारे दिन की दिनचर्या का आधार है। अगर आदि संकल्प में परिवर्तन नहीं हुआ तो सारा दिन स्वराज्य वा विश्व-कल्याण में सफल नहीं हो सकेंगे। आदि समय से परिवर्तन शक्ति कार्य में लाओ। जैसे सृष्टि के आदि में ब्रह्म से देव-आत्मा सतोप्रधान आत्मा पार्ट में आयेगी, ऐसे हर रोज़ अमृतवेला आदिकाल है। इसलिए इस आदिकाल के समय उठते ही पहला संकल्प याद में ब्राह्मण आत्मा पधारे – बाप से मिलन मनाने के लिए। यही समर्थ संकल्प, श्रेष्ठ संकल्प, श्रेष्ठ बोल, श्रेष्ठ कर्म का आधार बन जायेगा। पहला परिवर्तन – “मैं कौन!” तो यही फाउंडेशन परिवर्तन शक्ति का आधार है। इसके बाद –

दूसरा परिवर्तन "मैं किसका हूँ" सर्व सम्बन्ध किससे हैं। सर्व प्राप्तियां किससे हैं! पहले देह का परिवर्तन फिर देह के सम्बन्ध का परिवर्तन, फिर सम्बन्ध के आधार पर प्राप्तियों का परिवर्तन – इस परिवर्तन को ही सहज याद कहा जाता है। तो आदि में परिवर्तन शक्ति के आधार पर अधिकारी बन सकते हो।

अमृतवेले के बाद अपने देह के कार्यक्रम करते हुए कौन-से परिवर्तन की आवश्यकता है? जिससे निरंतर सहजयोगी बन जायेंगे। सदा यह संकल्प रखो – “कि मैं चैतन्य सर्वश्रेष्ठ मूर्ति हूँ और यह मन्दिर है, चैतन्य मूर्ति का यह देह चैतन्य मन्दिर है। मन्दिर को सजा रहे हैं। इस मन्दिर का अन्दर स्वयं बापदादा की प्रिय मूर्ति विराजमान है। जिस मूर्ति के गुणों की माला स्वयं बापदादा सिमरण करते हैं। जिस मूर्ति की महिमा स्वयं बाप करते हैं। ऐसी विशेष मूर्ति का विशेष मन्दिर है।” जितनी मूर्ति वैल्युएबल होती है मूर्ति के आधार पर मन्दिर की भी वैल्यू होती है। तो परिवर्तन क्या करना है? मेरा शरीर नहीं लेकिन बापदादा की वैल्युएबल मूर्ति का यह मन्दिर है। स्वयं ही मूर्ति स्वयं ही मन्दिर का ट्रस्टी बन मन्दिर को सजाते रहो। इस परिवर्तन संकल्प के आधार पर मेरापन अर्थात् देहभान परिवर्तन हो जायेगा। इसके बाद – अपना गोडली स्टूडेन्ट रूप सदा स्मृति में रहे। इसमें विशेष परिवर्तन संकल्प कौन-सा चाहिए? जिससे हर सेकण्ड की पढ़ाई हर अमूल्य बोल की धरणा से हर सेकण्ड वर्तमान और भविष्य श्रेष्ठ प्रालब्ध बन जाये। इसमें सदा यह परिवर्तन संकल्प चाहिए कि मैं साधारण स्टूडेन्ट नहीं, साधारण पढ़ाई नहीं लेकिन डायरेक्ट बाप रोज दूरदेश से हमको पढ़ाने आते हैं। भगवान के वर्शन्स हमारी पढ़ाई है। श्री-श्री की श्रीमत हमारी पढ़ाई है। जिस पढ़ाई का हर बोल पद्मों की कमाई जमा कराने वाला है। अगर एक बोल भी धारण नहीं किया तो बोल मिस नहीं किया लेकिन पद्मों की कमाई अनेक जन्मों की श्रेष्ठ प्रालब्ध वा श्रेष्ठ पद की प्राप्ति में कमी की। ऐसा परिवर्तन संकल्प ‘भगवान् बोल रहे हैं’, हम सुन रहे हैं। मेरे लिये बाप टीचर बनकर आये हैं। मैं स्पेशल लाडला स्टूडेन्ट हूँ – इसलिए मेरे लिए आये हैं। कहाँ से आये हैं, कौन आये हैं, और क्या पढ़ा रहे हैं? यही परिवर्तन श्रेष्ठ संकल्प रोज़ क्लास के समय धारण कर पढ़ाई करो। साधारण क्लास नहीं , सुनाने वाले व्यक्ति को नहीं देखो। लेकिन बोलने वाले बोल किसके हैं, उसको सामने देखो। व्यक्त में अव्यक्त बाप और निराकारी बाप को देखो। तो समझा – क्या परिवर्तन करना है। आगे चले – पढ़ाई भी पढ़ ली – अभी क्या करना है? अभी सेवा का पार्ट आया। सेवा में किसी भी प्रकार की सेवा चाहे प्रवृत्ति की, चाहे व्यवहार की, चाहे ईश्वरीय सेवा, प्रवृत्ति चाहे लौकिक सम्बन्ध हो, कर्मबन्धन के आधार से सम्बन्ध हो लेकिन प्रवृत्ति में सेवा करते परिवर्तन संकल्प यही करो – मरजीवा जन्म हुआ अर्थात् लौकिक कर्मबन्धन समाप्त हुआ। कर्मबन्धन समझ कर नहीं चलो। कर्मबन्धन, कर्मबन्धन सोचने और कहने से ही बन्ध जाते हो। लेकिन यह लौकिक कर्मबन्धन का सम्बन्ध अब मरजीवे जन्म के कारण श्रीमत के आधार पर सेवा के सम्बन्ध का आधार है। कर्मबन्धन नहीं, सेवा का सम्बन्ध है। सेवा के सम्बन्ध में वैरायटी प्रकार की आत्माओं का ज्ञान धारण कर, सेवा का सम्बन्ध समझ करके चलेंगे तो बन्धन में तंग नहीं होंगे। लेकिन अति पाप आत्मा, अति अपकारी आत्मा, बगुले के ऊपर भी नफरत नहीं, घृणा नहीं, निरादर नहीं लेकिन विश्व-कल्याणकारी स्थिति में स्थित हो रहमदिल बन तरस की भावना रखते हुए सेवा का सम्बन्ध समझकर सेवा करेंगे और जितने होपलेस केस की सेवा करेंगे तो उतने ही प्राइस का अधिकारी बनेंगे। नामिग्रामी विश्व-कल्याणकारी गाये जायेंगे। पीसमेकर की प्राइस लेंगे। तो प्रवृत्ति में कर्मबन्धन के बजाए सेवा का सम्बन्ध है – यह परिवर्तन संकल्प करो। लेकिन सेवा करते-करते अटैचमेंट में नहीं आ जाना। कभी डॉक्टर भी पेशेन्ट की अटैचमेंट में आ जाते हैं।

सेवा का सम्बन्ध अर्थात् त्याग और तपस्वी रूप। सच्ची सेवा के लक्षण यही त्याग और तपस्या है। ऐसे ही व्यवहार में भी डायरेक्शन प्रमाण निमित्त मात्र शरीर निर्वाह लेकिन मूल आधार आत्मा का निर्वाह, शरीर निर्वाह के पीछे आत्मा का निर्वाह भूल नहीं जाना चाहिए। व्यवहार करते शरीर निर्वाह और आत्म निर्वाह दोनों का बैलेंस हो। नहीं तो व्यवहार माया जाल बन जायेगा। ऐसी जाल जो जितना बढ़ाते जायेंगे उतना फंसते जायेंगे। धन की वृद्धि करते हुए भी याद की विधि भूलनी नहीं चाहिए। याद की विधि और धन की वृद्धि दोनों साथ-साथ होना चाहिए। धन की वृद्धि के पीछे विधि को छोड़ नहीं देना है। इसको कहा जाता है लौकिक स्थूल कर्म भी कर्मयोगी की स्टेज में परिवर्तन करो। सिर्फ कर्म करनेवाले नहीं लेकिन कर्मयोगी हो। कर्म अर्थात् व्यवहार योग अर्थात् परमार्थ। परमार्थ अर्थात् परमपिता की सेवा अर्थ कर रहे हैं। तो व्यवहार और परमार्थ दोनों साथ-साथ रहे। इसको कहा जाता है श्रीमत पर चलनेवाले कर्मयोगी। व्यवहार के समय परिवर्तन क्या करना है? मैं सिर्फ व्यवहारी नहीं लेकिन व्यवहारी और परमार्थी अर्थात् जो कर रहा हूँ वह ईश्वरीय सेवा अर्थ कर रहा हूँ। व्यवहारी और परमार्थी कम्बाइन्ड हूँ। यही परिवर्तन संकल्प सदा स्मृति में रहे तो मन और तन डबल कमाई करते रहेंगे। स्थूल धन भी आता रहेगा। और मन से अविनाशी धन भी जमा होता रहेगा। एक ही तन द्वारा एक ही समय मन और धन की डबल कमाई होती रहेगी। तो सदा यह याद रहे कि डबल कमाई करने वाला हूँ। इस ईश्वरीय सेवा में सदा निमित्त मात्र का मन्त्र वा करनहार की स्मृति का संकल्प सदा याद रहे। करावनहार भूले नहीं। तो सेवा में सदा निर्माण ही निर्माण करते रहेंगे। अच्छा ....।

और आगे चलो, आगे चल अनेक प्रकार के व्यक्ति और वैभव अनेक प्रकार की वस्तुओं से संपर्क करते हो। इसमें भी सदा व्यक्ति में व्यक्त भाव के बजाए आत्मिक भाव धारण करो। वस्तुओं वा वैभवों में अनासक्त भाव धारण करो तो वैभव और वस्तु अनासक्त के आगे दासी के रूप में होगी और आसक्त भाव वाले के आगे चुम्बक की तरफ फंसानेवाली होगी। जो छुड़ाना चाहो तो भी छूट नहीं सकते। इसलिए व्यक्ति और वैभव में आत्म भाव और अनासक्त भाव का परिवर्तन करो।

और आगे चलो – कोई भी पुरानी दुनिया के आकर्षणमय दृश्य अल्प काल के सुख के साधन यूज़ करते हो वा देखते हो तो उन साधनों वा दृश्य को देख कहाँ-कहाँ साधना को भूल साधन में आ जाते हो। साधनों के वशीभूत हो जाते हो। साधनों के आधार पर साधना – ऐसे समझो जैसे रेत के फाउंडेशन के ऊपर बिल्डिंग खड़ी कर रहे हो। उसका क्या हाल होगा? बार-बार हलचल में डगमग होंगे। गिरा कि गिरा यही हालत होगी। इसलिए यही परिवर्तन करो कि साधन विनाशी और साधना अविनाशी। विनाशी साधन के आधार पर अविनाशी साधना हो नहीं सकती। साधन निमित्त मात्र हैं, साधना निर्माण का आधार है। तो साधन को महत्व नहीं दो साधना को महत्व दो। तो सदा ये समझो कि मैं सिद्धि स्वरुप हूँ न कि साधन स्वरुप। साधना सिद्धि को प्राप्त कराएगी। साधनों की आकर्षण में सिद्धि स्वरुप को नहीं भूल जाओ। हर लौकिक चीज़ को देख, लौकिक बातों को सुन, लौकिक दृश्य को देख, लौकिक को अलौकिक में परिवर्तन करो अर्थात् ज्ञान स्वरुप हो हर बात से ज्ञान उठाओ। बात में नहीं जाओ, ज्ञान में जाओ तो समझा, क्या परिवर्तन करना है। अच्छा ....।

और आगे चलो – अभी बाकी क्या रह गया ! अभी सोना रह गया। सोना अर्थात् सोने की दुनिया में सोना। सोने को भी परिवर्तन करो। बेड पर नहीं सोओ। लेकिन कहाँ सोयेंगे। बाप की याद की गोदी में सोयेंगे। फरिश्तों की दुनिया में स्वप्नों में सैर करो तो स्वप्न भी परिवर्तन करो और सोना भी परिवर्तन करो। आदि से अन्त तक परिवर्तन करो। समझा – कैसे परिवर्तन शक्ति यूज़ करो।
इस नए वर्ष की सौगात परिवर्तन शक्ति की सौगात है। स्व परिवर्तन और विश्व परिवर्तन की इसी गिफ्ट की लिफ्ट से विश्व के परिवर्तन का समय समीप लायेंगे। नये साल की मुबारक तो सब देते हैं लेकिन बापदादा नए वर्ष में सदा तीव्र पुरुषार्थी बनने की नवीनता की इन-एडवांस मुबारक दे रहे हैं। नया वर्ष, नए संस्कार, नया स्वभाव, नया उमंग – उत्साह, विश्व को नया बनाने का श्रेष्ठ संकल्प, सर्व को मुक्ति-जीवनमुक्ति का वरदान देने का सदा श्रेष्ठ संकल्प ऐसे नवीनता की मुबारक हो, बधाई हो। पुराने संस्कारों, पुरानी चाल, पुरानी ढाल, पुराने की विदाई की बधाई हो। अच्छा ....।

ऐसे हर कर्म में परिवर्तन शक्ति द्वारा स्व परिवर्तन और विश्व परिवर्तन करने वाले, हर सेकण्ड, हर संकल्प, हर कर्म नया अर्थात् गोल्डन एज करने वाले श्रेष्ठ अर्थात् सतोप्रधान करने वाले, नए वर्ष में सवा में और विश्व में नया चमत्कार दिखाने वाले जो अब तक असम्भव समझ रहे हैं सर्व के प्रति वा विश्व के प्रति, उस असंभव को संभव करने वाले, ऐसे सदा सफलतामूर्त श्रेष्ठ सिद्धि स्वरुप आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

अच्छा !!!